त्रिपुर भैरवी नव चंडी पाठ एवं रुद्रविषेकम्

त्रिपुर भैरवी नव चंडी पाठ एवं रुद्रविषेकम्

कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले बैकुंठ चतुर्दशी जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था इससे देवता प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिवजी को त्रिपुरेश्वर महादेव नाम दे दिया।

इस विशेष दिन देवी को भोग वस्त्र अर्पण करे और अपने नाम और गोत्र से 
श्री त्रिपुरा भैरवी देवी एवं त्रिपुरेश्वर महादेव के पूजन एवं दर्शन कर आप
सभी कष्टों से मुक्ति एवं अक्षय पुण्य लाभ पा सकते है।

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान भोलेनाथ के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर नामक असुर का वध कर दिया था। वहीं तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने पिता तारकासुन की मृत्यु का बदला लेने प्रण लिया। इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था

तब ब्रह्मा देव ने तीनों को वरदान दिया कि निर्मित तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति आएंगी। साथ ही असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से यदि कोई उनको मारना चाहेगा, तभी त्रिपुरासुर का वध होगा।

इसके बाद भगवान भोलेनाथ ने उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष बाण चढ़ाकर त्रिपुरासुर का अंत कर दिया। तभी से भोलेनाथ को त्रिपुरारी भी कहा जाने लगा। बता दें कि जिस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था, वह कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। त्रिपुरासुर की वध की खुशी में सब देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे। जहां पर गंगा स्नान कर दीप दान कर खुशियां मनाई गईं। तभी से पृथ्वी पर देव दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा।

इस दिन को हरि-हर मिलन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन दोनों देवताओं की एक साथ पूजा की जाती है 

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